गुरुवार, 10 मई 2018

इल्म की सौगातें.... नीतू ठाकुर


इंतजार, इजहार, गुलाब, ख्वाब, वफ़ा, नशा
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई, आजमाइशें सरेआम हुई

अदब, कायदा, रस्में, रवायतें, शराफत, नेकी 
हर घडी बेजान हुई, रिश्तों की गहराइयां चुटकियों में तमाम हुई 

इज्जत, ईमान, हया, नजाकत, मासूमियत, पाकीजगी 
वक़्त के साथ कुर्बान हुई, खानदान की अस्मत बेपर्दा खुलेआम हुई  

सवाल, सलाह, मशवरा, हिदायतें, नसीहतें, फिक्र,  
जब से चुभने का सामान हुई, इल्म की सौगातें भी जैसे हराम हुई       

बदजुबानी, बदतमीजी, बदमिजाजी,बेखयाली, बेअदबी, बेशर्मी 
जब से अंदाज-ए-गुफ्तगू बदनाम हुई, बुजुर्गों की जुबान बेजुबान हुई

हवस, हैवानियत, दरिंदगी, वहशीपन, आतंक, खौफ,
जब से ये बातें आम हुई, इंसानों की इंसानियत गुमनाम हुई     

                                 - नीतू ठाकुर 


   

सोमवार, 7 मई 2018

नही जानती हूँ मै उसको....नीतू ठाकुर


नही जानती हूँ मै  उसको 
जिसने ये ब्रह्माण्ड  बनाया 
अगणित रंग बिखेरे जिसने 
सुंदरता का अर्थ बताया 

दूर तलक फैले अंबर को 
चंद्र ,सूर्य, तारों से सजाया 
अग्नि ,जल, वायू ,पृथ्वी दे 
जग को रहने योग्य बनाया 

नही जानती हूँ मै उसको 
जिसने सप्त सुरों को जाया 
पत्थर में भी ध्वनी बसाई 
सब के तन में प्राण समाया 

पर जो भी है वो शक्तिमान है 
जिसका गुण तो सिर्फ दान है 
ढूंढ नही पाये हम उसको  
कारण उसका अल्प ज्ञान है 

स्वार्थ में डूबा लोभ नही जो 
जबरन खुद को श्रेष्ठ बताये 
छोड़ दे जग में तन्हा उसको 
जो उसकी स्तुति न गाये  

इतना सूक्ष्म नही हो सकता 
जो धर्मों में बंटता जाये 
खुद की सत्ता स्थापन हेतु 
हमको अपना दास बनाये 

इतना क्रूर नही हो सकता 
किसी की अस्मत दांव लगाये  
उल्टे -सीधे नियम बनाकर 
जग में अपना भय फैलाये 

भेद भाव से सदा परे है 
कभी किसी का धर्म न पूछे 
पशु ,पक्षी या वृक्ष, लतायें 
सब को एक सरीखा सींचे 

कुछ तो सोच रहा होगा वो 
देख के पागल दुनिया नीचे 
रक्षण हेतु सदा है तत्पर 
चाहे हम उसको न पूंछे 

    - नीतू ठाकुर 


शुक्रवार, 4 मई 2018

एक तुम्ही तो हो.....नीतू ठाकुर

रोज मै तुम्हें कितना 
इंतजार करवाता हूँ 
थक हारकर जब 
लौटकर आता हूँ 
ज़िंदगी की उलझनों में 
खोया खोया सा मै 
तुम्हारी प्यारी सी मुस्कान को 
नजरअंदाज कर जाता हूँ 
कभी कभी गुस्से में 
बहुत कुछ कह जाता हूँ 
और तुम्हारे जाने के बाद 
अधूरा सा रह जाता हूँ 
धधकती मन की ज्वाला से 
तुमको जलाता हूँ 
निर्दोष होते हुए भी 
कितना कुछ सुनाता हूँ 
क्यों की तुम ही तो हो जो 
समझ सकती हो मेरे जज्बात और 
हर पल कोसते परेशान करते मेरे ख़यालात 
एक तुम्ही तो हो 
जिसे अपना समझ कर 
सता सकता हूँ ,रुला सकता हूँ और 
प्यार के दो मीठे शब्दों से 
मना भी सकता हूँ 
जब पड़ जाती है रिश्ते में खटास 
तब भी दिल के किसी कोने में 
बच जाती है यादों की मिठास 
तुमसे मिलने के लिए 
दिल बेकरार रहता है 
इन आँखों को पल पल 
तुम्हारा इंतजार रहता है 
मै कुछ भी क्यो न करलूं पर 
तुम लौटकर आओगी 
ये ऐतबार रहता है 
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ 
कायम हमेशा प्यार रहता है 
एक तुम ही तो हो जो 
इस पागल को अपना सकती हो 
मेरी हर खता भुलाकर 
मेरी खुशियों के लिए मुस्कुरा सकती हो 
तुम और सिर्फ तुम  ... 

             - नीतू ठाकुर 


आदियोगी - नीतू ठाकुर 'विदुषी'

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